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पं. पू. संत श्री गुरुदेव बाबाजी
संत श्री श्री 1008 सुधाकर जी महाराज
परम पूज्य परम संत श्री श्री 1008 सुधाकर जी महाराज का परिचय shudhakar ji maharaj


॥ गुरु ॐ ॥
॥ ध्यान मूलं मूर्तिः, पूजा मूलं गुरुः पदम् ॥ ॥ मंत्र मूलं गुरुर्वाक्यम्, मोक्ष मूलं गुरुः कृपा ॥
चलते-फिरते, उठते-बैठते, आते-जाते, खाते-पीते, सोते-जागते केवल एक ही ध्येय - गुरुर्नाम केवलं! ऐसे परम भक्त शिरोमणि अनन्य सेवक, सद्गुरुः कृपा पात्र है- संत सुधाकर महाराज! आप मूल रूप से बाकानेर निवासी श्री प्रभाकर भालके के बड़े सुपुत्र हैं। बड़वानी से बी.एससी. पास कर ग्राम सेवक पद पर आसीन हुए। पर बचपन से ही गुरु आश्रम बाकानेर में बाबाजी का सान्निध्य प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे गुरुभक्ति, गुरुसेवा का रंग ऐसे चढ़ा की घर संसार त्याग कर गुरुमय हो गये। प्रारंभ में माताजी के हाथ का बना या स्वयं पका भोजन करते थे लेकिन 25-26 वर्षों से आप श्री केवल रात्रि में एक बार फलाहार लेते हैं। प्रतिदिन महाराज श्री योगेश जी के साथ हवन करते हैं और उनकी गुरुवत् पूजा अर्चना रत रहते हैं।
आप श्री का वास्तविक नाम दिवाकर है लेकिन बाबाजी उन्हें सुधाकर नाम से पुकारते थे तभी से वे सुधाकर महाराज के नाम से जाने जाने लगे हैं। आप चंद्रमा के समान शांत, शीतल, सरल, सहज है। घंटों गुरु के ध्यान में लीन रहते थे। साधना का ल में आपने अपने तन-मन को इतना साध लिया को उ न पर सर्दी-गर्मी, धूप-तपन का कोई प्रभाव नहीं होता था। आप वैशाख ज्येष्ठ की घोर तपती धूप में भी रेत पर नंगे बदन, नंगे पाँव ध्यानावस्थ रहते थे। साधना काल में नाते, रिश्तों से विरत केवल और केवल गुरु ध्यान। उनकी भक्ति रंग लाई, सद्गुरु बाबाजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ आज आप एक सिद्ध महात्मा, परमयोगी, दीन-दुःखियों के सेवक व आयुर्वेद के अच्छे ज्ञाताओं में गिने जाते हैं। बाबाजी के ब्रह्मलीन होने के बाद आयुर्वेद विभाग का सारा काम बाबाजी के नक्से कदम पर चलते हुए आप श्री ही प्रतिपादित कर रहे हैं। बाबाजी की वृद्धावस्था में उनकी सेवा के साथ आयुर्वेद की औषधियों निर्माण एवं वितरण आदि आपके हाथों ही होता था। बाबाश्री का अनुभव उनके आज भी काम आ रहा है।
आप श्री अन्न-मिष्ठान न खाकर दीन-दुःखियों की सेवा का मेवा खा रहे हैं। बचपन में अस्थमा रोग से ग्रसित थे। कहते हैं अस्थमा शरीर के साथ ही जाता है लेकिन बाबाश्री के आशीर्वाद से अस्थमा नहीं रहा। लेकिन अल्पाहार व कई-कई दिनों तक निराहार से काया क्षीण होने से कुछ व्याधियाँ तन को घेरती है। वही कुछ भक्तों की व्याधियों को ही अपने ऊपर लेने से रोग ग्रस्त रहे हैं। शारीरिक असह्न पीड़ा के बावजूद संत जनसेवा में रात-दिन जुटे रहते हैं। डॉक्टरी वैद्यो के आराम के सख्त निर्देश के बावजूद भी वे सेवा का व्रत चौबीसों घंटे निभाते हैं। आश्रम में दीदियाँ उनकी सेवा में रात दिन लगी रहती हैं लेकिन वे सेवा लेने के स्थान पर सेवाएँ प्रदान करने में ही इस अदम्य शरीर को उपयोगी मानते हैं। उनकी वाणी वाणी फलित है वह कह दिया वही होगा। उनका दर्शन भव रोग मिटाने वाला, सांसारिक बंधन काटने वाला है। तन पर लंगोटी और गमछे के अलावा कुछ भी धारण नहीं करते, चौबीसों घंटे में एक बार रात्रि में जल ग्रहण करते हैं। दिनजनों की पुकार पर वे कहते हैं - भाई! मकड़ो त कई आवतो। बाबाजी सब को भलो कराड़ो। वे सारे काम बाबा श्री को अर्पित करते हैं। बाहरी चकाचौंध से दूर भागते हैं। यश कीर्ति को नरक को खान मानते हैं। कभी मंत्र आदि पर नहीं बैठते फोटो, पुष्पाहार से सख्त परहेज करते हैं। वे आज भी इतने बड़े संत होते हुए भी अपने आप को गुरुसेवक ही कहते हैं। सब गुरु को ही अपना तो कुछ है ही नहीं। सद्गुरुदेव समाधि स्थल चिंबल्डा सरदार सरोवर बांध की डूब में आने पर आप श्री के अथक प्रयासों से ग्राम मलगाबड़ा खड़पा- बड़ौदा मार्ग पर नये पुल के पास एक भव्य मंदिर के साथ आश्रम का निर्माण चल रहा है। बाबाश्री की मंशानुसार यहाँ हनुमतलाला मूर्ति निर्माण हेतु विशाल लाल पत्थर मंगाया गया है जो एक हजार क्विंटल का है। साथ ही संस्कार शाला संस्कृत विद्या पीठ, यज्ञ शाला आदि की योजना भी यहीं पर है। आप श्री बालीपुर से समय निकालकर यहाँ काम भी संभाल रहे हैं। माँ नर्मदा के भव्य घाट व उनकी दिव्य गोद में यह आश्रम संत श्री के अनथक प्रयासों से ज्योर्तिमय होगा।



















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