भक्तों द्वारा संचालित आश्रम वेबसाइट यह वेबसाइट सीधे आश्रम द्वारा नहीं, बल्कि भक्तों द्वारा चलाई जा रही है, ताकि सभी भक्तगणों को आश्रम की जानकारी आसानी से मिल सके।

पं. पू. संत श्री गुरुदेव बाबाजी
संत श्री श्री 1008 गजानंद जी महाराज बालीपुर Shant Shree Gajanand ji Maharaj Balipur Dham
परम पूज्य परम संत श्री श्री 1008 गजानंद जी महाराज बालीपुर का परिचय
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा संवत 1976 तद्नुसार 5 मार्च 1920 को बालीपुर में त्यागमय जीवन अंगीकार कर चुके नैष्टिक ब्राह्मण पं. घनश्यामजी भार्गव के यहाँ माता कस्तुरीदेवी के गर्भ से रात्रि के प्रथम प्रहर में जो बालक पैदा हुआ था, वही बालीपुर के संत के रुप में जाना जाने लगे। बाबा ने अपनी विलक्षणताओं एवं योग्यताओं को सदा छिपा कर रखा। बहुदा वे कहा करते थे- मैं तो एक सीधा-सादा बाह्मण हूँ। मुझमें पेट भरने की भी योग्यता नहीं हैं। किंतु इस विनम्रता में एक समर्थ सिद्ध, योगी, ज्ञानी और परम तपस्वी के रुप में उन्हें पाया जा सकता था। बाबा अपने चमत्कारों के बल पर जनता का ध्यान खींचते पाये जाते हैं। ऐसे ही किसी एक चमत्कारी बाबा के बारे में अखबार में कुछ छपा था। वह उन्हें पढ़कर सुनाया गया। मैंने कुछ विनोद में कहा -बाबा ! आप भी तो चमत्कार बता सकते हैं। साँई बाबा के चित्र से भभूति निकलती है, गंगाजल निकलता है और जिस भक्त के घर ऐसे चमत्कार घटते हैं, वह रातों-रात धनवान बन जाता है। आपके चित्र से भी.... मैं अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि बाबा ने अत्यंत आवेश में आकर कहा चमत्कार तो बहुत मामूली बात हैं। मेरा सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि मेरे से कोई चमत्कार घटित नहीं हो। मैंने मस्तक भूमि पर रखकर बाबा से माफी मांग ली। उनके आसपास प्रकृति उनके संकल्प को मूर्त रुप देने के लिये तैयार रहती थी, किंतु संत रुप में उन्होंने हमेशा अपनी इच्छाओं का नियंत्रण किया।


सन् 1944 से लेकर 1998 तक चैत्र एवं अश्विन दोनों नवरात्रियों में वे अनुष्ठान करते रहें। नौ दिनों तक केवल वायु पीकर वे रहते। पानी भी त्याज्य था किंतु पर दुःख कातर बाबा ने कभी अपने आराम के लिये समय न लिया। आने वाले मरीजों, भक्तों से हमेश की तरह मिलते रहते थे। दोंनो नवरात्रियों की नवमी को भंडारा होता था हजारों लोग भाग लेते थे । यज्ञ की पूर्णाहुति एवं आरती के पश्चात बाबाजी समाधिस्थ हो जाते थे। देर रात्रि में उन्हें समाधि से जगाया जाता था तथा अनुष्ठानोत्तर पारणे के लिये फलों का रस आदि उन्हें पीने के लिये दिया जाता था। फिर बाबाजी ब्राह्मण देवताओं को जूस आदि पीने के लिये अपने हाथों से देते। उपस्थित भक्तों को आशीर्वाद देते। उसके बाद भण्डारे का समापन करने के पूर्व भक्तों से कहते, देखो कोई प्रसाद लेने में छूटय तो नहीं। तब कार्यकर्तागण आश्रम के कोने-कोने में जाकर पता लगाते, सघन पूछताछ करते। सोये हुए लोगों को जगाकर पूछते। अगर कोई वंचित है तब वे भक्तों की भी नहीं मानते और उस वंचित व्यक्ति को अपने हाथों, प्रसाद ले जाकर खिलाते। उसके बाद ही भण्डारे का समापन किया जाता है। बाबा की विनम्रता नर्मदा नदी की तरह गंभीर ही रही। वे संबल और विश्वास प्रदाता थे, इसलिये उनकी विभूति, ऐश्वर्युक्त स्वरुप एकमात्र वत्सल स्वरुप से सदा आवृत रही।
उन्नीस मार्च 2007 (मिति चैत्र कृष्ण 30, अमावस्या) सोमवार (सोमवती योग) इन्दौर में श्री गीता भवन चिकित्सालय में बालीपुर के करुणामूर्ति संत श्री गजाननजी महाराज ने अंतिम सांस ली। उस समय प्रातः 8.50 बजे थे सूर्य ग्रहण प्रातः 7.46 को समाप्त हो गया था और ग्रहण दूषित अमावस्या प्रातः 8.29 को भूमंडल की एक जीवित किंवदंती, चलता-फिरता ममत्व का सुमेरु और निरंतर भारतीय संस्कृति को जन-जन में सुजग रखने का ईश्वरी यंत्र खत्म हो गया था।
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में सूर्य व चन्द्र दोनों की स्थिति मीन तारा मंडल में थीं। शुक्ल योग एवं किंस्तुघ्न करण था। नवरात्रि के प्रथम घट स्थापना दिवस की प्रथम घड़ी बीत चुकी थी। किसी मनुष्य के प्रयाण काल में प्रकृति अनायास इतने विलक्षण एवं शुभ योगतत्व प्रकट नहीं करती। यह उस दिवंगत मानव की जीवन प्रणाली पर निर्भर करता है कि मृत्यु का श्रेष्ठ काल पुरस्कार प्रकृति माता उसे प्रदान कर रही है। प्रकृति के दिव्य श्रेष्ठ काल पुरस्कार प्राप्त बाबा महापुरुष योग में पैदा हुए थे। जीवन भर उन्हों ने तपश्चर्या, अनुष्ठान सेवा, परदुःख भंजन कार्य किये। आजन्म तपोनिष्ट बाबा कभी भी अपने नित्य नैमित्तक कर्मो से विरत नहीं हुए। मृत्यु के क्षों मे भी उनकी यह निष्ठा भंग नहीं हुई। सूर्य ग्रहण उपरांत उन्होंने भस्म स्नान किया । यज्ञोपवीत बदली और बाद में ही महाकाली के दिव्य रथ पर आरुढ़ हुए।
87 वर्ष 15 दिन की उनकी जीवन रेखा अग्नि रेखावत थी। पूरे जीवन काल में उन्होंने हजारों साधकों को स्वरुप संघान में मदद की और उनके लीला संवरण कर लेने के बाद अब भी साधकगण उनका स्मरण, चिंतन कर आत्म लाभप्राप्त कर रहें हैं। बाबाजी अब स्मृतियों के वृन्दावन में रहने चले गये हैं।
मेरे प्राणों के प्राण, प्रभो मेरे दयामय
भोगों में सुख नहीं है, यह अनुभव बार-बार होता है, फिर भी मेरा दुष्ट मन उन्हीं में सुख मानता है और बार-बार तुमको भूलकर उन्हीं की और दौड़ता है। बहुत समझाने की कोशिश करता हूँ, परन्तु मानता नहीं है। तुम्हारे स्वरूप चिंतन में लगना चाहता हूँ, कभी-कभी कुछ लगता सा दिखता है, परन्तु असल में लगता नहीं। मैं तो जतन करके हार गया, मेरे स्वामी ! अब तुम अपनी कृपा-शक्ति से इसे खींच लो। मुझे ऐसा बना दो कि मैं सब प्रकार से तुम्हारा ही हो जाऊँ धन, ऐश्वर्य, मान जो कोई भी तुम्हारी ओर लगनें में बाधक हों उन्हें बलात् मुझसे छीन लो। मुझे चाहे राह का भिखारी बना दो, चाहे सबके द्वारा तिरस्कृत करा दो, परन्तु अपनी पवित्र स्मृति मुझे दे दो। मैं, बस तुम्हारा स्मरण करता हुआ, तुम्हारे स्वरुप-गुणों का चिन्तन करता हुआ निरन्तर सच्चे आनन्द में निमग्न रहूँ। मेरे सुख-दुःख, हानि-लाभ, सब कुछ तुम्हारी स्मृति में समा जाय। वे चाहे जैसे आये जाये, मैं सदा तुम्हारे प्रेम में डूबा रहूँ। सब में, सब अवस्थाओं में, सब भावनाओं में, सब क्रियाओं में और सारे सृजन-संहार में केवल तुम्हारा अनुभव करूँ। तुम्हारा ही प्यार स्पर्श पाकर सदा उल्लसित होता रहूँ। मेरे मन से सब कुछ भुला दो और उस सब कुछ के बदले में एकमात्र अपनी मधुर स्मृति को ही जगाये रखो। कोई ऐसा क्षण हो ही नहीं, जिसमें मन तुम्हें भूल सके। यदि हो तो बस, जैसे मछली जल के बिना छटपटा कर मर जाती है, वैसा ही यह मन भी मर जाए।
मेरे प्राण सदा तुम्हारे साथ ही रहें तुम्हारा बिछोह कभी हो ही नहीं। यदि ऐसा हो तो बस, उसी क्षण तेल के अभाव में दीपक के बुझ जाने की भाँति शान्त हो कर तुममे समा जाऊँ। मैं सदा अनुभव करूँ- तुम मेरे हो, मैं तुम्हारा हूँ। तुम मेरे साथ हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम मुझे देख रहे हो, मैं तुम्हें देख रहा हूँ। तुम मुझे पकड़े हो, मैं तुम्हें पकड़े हूँ। तुम मुझे आलिंगन कर रहे हो, मैं तुम्हें आलिंगन कर रहा हूँ। तुम मुझ में समा रहे हो, मैं तुममें समा रहा हूँ और तुम मुझमें हो मैं तुममें हूँ। मेरे प्राणों के प्राण, अब देर न करो बहुत समय बीत गया मुझे भटकते। तुम्हारा अपना ही होकर मै जो इतनी दुदर्शा में पड़ा हूँ, यह तुमसे कैसे देखा जाता है ? भगवन ! अब तो तुरन्त दया करके अपनी परम दया का अनुभव करा दो, मेरे स्वामी।
गुरुदेव की दुर्लभ फोटो






























































महत्वपूर्ण लिंक
संपर्क सूत्र
© 2025. All rights reserved.